22 Feb 2022
कमल/न्यूज़ नगरी
लुवास द्वारा पिछले 3-4 वर्षों से अनुसंधान निदेशक डॉ. प्रवीन गोयल की अध्यक्षता में एम्ब्र्यो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी में काम किया जा रहा था। इसके सकारात्मक परिणाम मिले है जिसके बाद विश्वविद्यालय ने यह निर्णय लिया कि हम इस टेक्नोलॉजी को किसानों एवं गौशाला तक लेकर जायेंगे। पिछलें वर्ष विश्वविद्यालय ने विभिन्न गौशालाओं से 48 गायों को सेलेक्ट करके इस कार्य के लिए चुना तथा उनमें से पांच गाय इस प्रक्रिया से माँ बन चूकी हैं। जिनमें 4 बछड़ीयां एवं एक बछड़ा है, इसके अतिरिक्त 5 गाय और गर्भित हैं जिनसे शीघ्र ही बच्चे प्राप्त होने की उम्मीद है।
पत्रकार वार्ता में कुलपति विनोद कुमार ने बताया कि इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य यह है कि प्रदेश में देसी गायों की नस्ल में सुधार करें ताकि उनकी दूध उत्पादन क्षमता बढ़े और जिससे कि किसानों की आमदनी हो सके या हमारी जो गौशालायें हैं उनकों अच्छी दूध देने वाली गायों की प्राप्ति हो सके । उन्होंने बताया कि इस टेक्नोलॉजी के माध्यम से हम एक गाय के अण्डों से एक वर्ष में ही 10- 15 बछड़े भी तैयार कर सकते है। आज वर्तमान में हरियाणा की गौशालाओं में दूध देने वाले पशुओं की संख्या काफी कम है जिससे कि उन्हें आर्थिक रूप से सरकार पर या अन्य दानियों पर निर्भर रहना पड़ता है । यदि विश्वविद्यालय के सहयोग से हम गौशालाओं में जर्मप्लास्म में उन्नति करके उनके दूध देने वाले पशुओं की संख्या बढ़ा सके व दूध की मात्रा बढ़ा सके तो गौशालायें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सकती हैं । इसके अतिरिक्त कुलपति महोदय ने बताया कि इस टेक्नोलॉजी के प्रयोग से हम आवारा पशु/कम गुणवत्ता वाली गायों को सरोगेट मदर के रूप में प्रयोग करते है जिससे आवारा पशुओं की समस्याओं से काफी हद तक प्रदेश को छुटकारा दिलवाया जा सकता है । क्योकिं उनमें तैयार एम्ब्र्यों को ट्रांसप्लांट करके उन्हें गर्भित किया जा सकता है और उनसे अच्छी नस्ल की बछड़ी ली जा सकती है जो बाद में अधिक दूध देगी।
पत्रकारवार्ता को संबोधित करते हुए अनुसंधान निदेशक डॉ. प्रवीन गोयल ने बताया कि पूरे भारत में लगभग 22 जगहों पर यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है। यह भारत सरकार का कार्यक्रम है और 7 जगह ऐसी हैं जहाँ यह प्रोजेक्ट अभी सुचारू रूप से चल रहा है । इस कार्यक्रम में कुछ गुणवत्ता वाली गायों का चयन अंडाणु संग्रहण के लिए किया जाता है जिससे आगे उच्च गुणवत्ता के भ्रूण बनाए जाते हैं और इस माध्यम से हम प्रदेश के जेनेटिक मटेरियल में सुधार कर सकते हैं। पत्रकार वार्ता में कुलपति विनोद कुमार ने बताया कि लुवास देश का पहला ऐसा संस्थान है जो इस टेक्नोलॉजी को गौशालाओं में, आवारा पशुओं पर तथा किसानों के खेतों में लागू करने जा रहा है और यदि हम इसमें पूर्णत: सफल रहे तो पूरे राज्य का जर्मप्लाज्म बहुत जल्दी सुधार सकते है तथा राज्य को आवारा पशुओं की समस्या से छुटकारा मिल सकता है ।