हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में विकसित बेर के फल से गुठली निकालने के यन्त्र को मिला पेटेंट

 


17 Dec 2022 

न्यूज़ नगरी 


हिसार (ब्यूरो)-चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में विकसित बेर के फल से गुठली निकालने के यन्त्र को भारतीय पेटेंट कार्यालय द्वारा पेटेंट प्रदान किया गया है। विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय के बागवानी विभाग में कार्यरत सहायक प्राध्यापक डॉ. मुकेश कुमार द्वारा डॉ. देवी सिंह व डॉ. राजेन्द्र सिंह गोदारा के सहयोग से विकसित किए गए इस यन्त्र को पेटेंट अधिनियम 1970 के अंतर्गत 20 साल की अवधि के लिए 408016 संख्या से पेटेंट अनुदत किया गया है।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि बेर जिसको शुष्क क्षेत्र के फलों का राजा व गरीब का फल भी कहा जाता है, बहुत सारे पोषक तत्वों व विटामिनों से भरपूर फल है।  इसके प्रयोग से उचित मात्रा में पोषक तत्व मिलते है जिससे लोगों में कुपोषणता की समस्या कम होगी। परन्तु इस फल में गुठली होने की वजह से हम इसको छोटे बच्चों, बुजुर्गों व आमजन को देने में परहेज करते हैं। बच्चों में इसकी गुठली के खाने की नली में फसने का भय बना रहता है एवं बुजुर्ग लोगों के कमजोर दांत टूटने का खतरा रहता है। इनके अतिरिक्त खाते समय बेर की गुठली के साथ इसका गुद्दा भी चिपका रह जाता है जिससे इसमें उपस्थित पोषक तत्व बेकार चले जाते हैं। गुठली को मुंह से निकालकर बार-बार फेंकना भी एक समस्या है।  उन्होंने कहा बेर की गुठली निकालने के बाद बच्चों को इसे बिना भय के खाने को दिया जा सकता है और बुजुर्ग भी इसको आसानी से खा सकेंगे।

विश्वविद्यालय को मिल चुके हैं 20 पेटेंट

कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने बताया कि इस पेटेंट के साथ विश्वविद्यालय में विकसित की गई विभिन्न प्रौद्योगिकियों पर अब तक मिल चुके पेटेंटों की संख्या बढक़र 20 हो गई है। इनके अतिरिक्त विश्वविद्यालय को 6 डिजाइन पेटेंट, 11 कॉपीराइट और एक ट्रेड मार्क भी प्रदान किए जा चुके हैं।

प्रसंस्करण के लिए बहुत उपयुक्त है यन्त्र

विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. जीत राम शर्मा ने कहा गुठली निकालने के बाद प्रसंस्करण के लिए बेर का गुद्दा भी आसानी से बनाया जा सकता है जो विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाने के काम आ सकता है। इसके साथ ही इसकी केंडी व मुरब्बा बनाने के लिए फल में छेद करने की आवश्यकता नहीं पड़ती जिससे इसकी अच्छी गुणवत्ता के साथ-साथ बढिय़ा पैङ्क्षकग व परिवहन भी आसानी से किया जा सकता है। उन्होंने कहा इसकी प्रोसेसिंग की मांग बढऩे से तुड़ाई के बाद होने वाले नुकसान को कम किया जा सकेगा और किसानों को इसके उचित भाव भी मिलेंगे।

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