30 September 2024
न्यूज़ नगरी
हिसार(ब्यूरो)-सर्वोदय भवन, गांधी अध्ययन केंद्र में चुनावी वायदों का लोक लुभावन राजनीतिक जाल विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें भारत के राष्ट्रपति द्वारा रजत पदक से सम्मानित प्रोफेसर सतीश सिंगला ने बताया कि चुनाव के समय लोक लुभावन वायदों को लोकतान्त्रिक प्रणाली से जोडक़र हर नेता एक दूसरे से प्रतिस्र्पधा करता हुआ ऐसे देने की बात कर रहा है जैसे वह जनता को कुछ अपनी जेब से दे रहा हो। चुनाव से पहले मतदाताओं को मुफ्त साइकिल, फोन, लैपटॉप, वाशिंग मशीन, टैब, टीवी, बस की सवारी, स्कूटी आदि कई मुफ्त उपहारों की बौछाार करता हुए राजनीतिक दल इन लोक लुभावन नामों को गिनाता हुआ वोटर्स को अपनी ओर खिंचता हुआ एक ऐसा आकर्षण फेंकता है, जिससे मतदाता इस प्रकार से नेता की बातों पर विश्वास करके फंस जाता है और अपने विवेक का इस्तेमाल किए बिना वोटर अपना मत ऐसे नेता के पक्ष में दे देता है, जो अपने पूरे कार्यकाल में जनता के कल्याण से काफी दूर जा चुका होता है।
बुनियादी स्वास्थ्य सेवा और सस्ती शिक्षा प्रदान करना सरकार का मूलभूत दायित्व है, फिर भी इन उपायों को मुफ्त साइकिल, मुफ्त वाई-फाई आदि के साथ जोड़ दिया जाता है और इन्हें खैरात या मुफ्त कहा जाता है। वक्ता ने बताया कि फ्रीवीज का अर्थ केवल गरीब और जरूरतमंद को सहारा देकर उसके जीवन को सुचारू रूप से चला पाने के लिए एक सामयिक मदद होती है, लेकिन देखा यह जाता है कि फ्रीवीज का बड़े स्तर पर दुरूपयोग होता है जिसका लाभ वे व्यक्ति भी ले लेते हैं जो आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं और उन्हें इस प्रकार की मुफ्त में दी जाने वाली सुविधा का हकदार नहीं होता है। वक्ता ने बताया कि चुनाव के समय नेताओं द्वारा लोगों को बड़ी-बड़ी सुविधाओं के नाम पर मुफ्त में दी जाने वाली सुविधाओं के वायदों के पीछे उनका कोई फाइनेंसियल मूल्यांकन नहीं होता है जिसके कारण वे उन सुविधाओं को दे पाने में खरा नहीं उतरते और इस प्रकार से जनता को वायदों के मकडज़ाल में फंसा कर वोट हासिल कर लिए जाते हैं जो कि जनता के साथ किया गया ऐसा व्यवहार उचित नहीं है। इससे मतदाताओं के मुफ्तखोरी के आदी होकर अपने कर्तव्य के प्रति विमुख हो जाने की सम्भावना ज्यादा रहती है। गरीबों के दुख को अल्पकालिक प्रोत्साहनों से हल नहीं किया जा सकता है।
वक्ता ने कहा कि लोक लुभावन वायदों के प्रचार की अपेक्षा राष्ट्र की शिक्षा और स्वास्थ्य के सुधार और बिजली, पानी की अच्छी क्वालिटी देने का प्रचार होना चाहिए ताकि जनता का वह वोटर जो मुफ्तखोरी का शिकार होता था, अब वह इस नकारात्मक विचार की संकीर्णता से ऊपर उठे और अपने जीवन स्तर को अच्छे से जीता हुआ राष्ट्र की प्रगति में एक अहम रोल अदा कर सके। वक्ता ने कहा कि चुनाव जीतना और सुशासन दो अलग-अलग चीजें हैं। मुफ्त की चीजें चुनाव जीतने में मदद कर सकती हैं, लेकिन राजनीति में ये अल्पकालिक उपाय व्यापार में व्यापारी द्वारा उपयोग किए जाने वाले बिक्री संवर्धन उपकरणों की तरह हैं, जो अगर समय के साथ सही तरीके से प्रयोग नहीं किए गए तो ब्रांड वैल्यू को खत्म कर देंगे। दूसरी ओर, राजनीतिक दलों को दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि वे देश के हित में चीजों को कैसे बदलना चाहते हैं और सुशासन की ओर ले जाने वाली नीतियां तैयार करना चाहते हैं जो आम आदमी के बोझ को कम कर सकें। वक्ता ने राष्ट्रहित में बोलते हुए कहा-मुफ्तखोरी बांटने की अपेक्षा आज के युवाओं को हुन्नर बांटने की जरुरत है ताकि विश्व का सबसे अधिक युवाओं वाला देश भारत तरक्की के शिखर पर पहुंच सके। चुनाव के लोक सुभावन मकडज़ाल से मतदाता को जागरूक करना होगा ताकि वह नेता की घोषणा को समझ सके कि वह कैसे इतनी बड़ी -बड़ी घोषणाओं को पूरा करेगा जिसका मूल्यांकन बताता है कि वह जनता के सामने सरासर झूठ बोलकर केवल ज्यादा से ज्यादा मत हासिल करना चाहता है। राष्ट्र के प्रति कर्तव्यनिष्ठा का भाव भरकर नेताओं की इस लोक लुभावन चुनौती का सामना इमानदारी और मतदाता के जागरूक होने से ही किया जा सकता है।
बतौर सभा अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता पीके संधीर ने चुनावों के लोक लुभावन वायदों पर बोलते हुए बताया कि नेताओं की घोषणाएं मतदाता के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है कि कैसे मतदाता जागरूक बने। बताया-फ्रीवीज एक तरह से सोशल सिक्युरिटी होती है, जो केवल गरीब और जरूरतमंद को मिलनी चाहिए परन्तु इसे मकडज़ाल बनाकर जनता को फंसाना किसी भी मायने में जायज नहीं है। देश के सामाजिक चिंतकों द्वारा इस पर विचार करने की जरुरत है ताकि वे मतदाताओं को जागरूक करके सही राह दिखा सकें और उनके मत का प्रयोग भी बिलकुल सही सही हो सके, जो राष्ट्र के विकास में अहम योगदान का कारण बने। इससे सामाजिक विषमता भी कम होगी और जरूरतमंद आदमी का जीवन का हौसला बढ़ेगा, जो जायज भी है। मुक्तक सम्राट सत्यपाल शर्मा ने मंच का संचालन किया। इस अवसर पर बनवारीलाल प्रजापति, सर्वोदय मित्र धनराज, बनीसिंह जांगड़ा, कुलदीप सिंह, व्यवस्थापक धर्मवीर शर्मा, विनीत जांगड़ा, डॉ. सीताराम सैनी, के.पी. कालिया, सुरेश जैन, ऋषिकेश गोयल, जगदीप भार्गव, विजय कुमार शर्मा, बजरंग वत्स, राजेश जाखड़, विजेंद्र कुमार, वीरेंद्र कुमार बागोरिया, राधेश्याम ऐरण, वीरेंद्र जाखड़, डॉ. महेंद्र सिंह रोहिला और डॉ. सीताराम सैनी भी उपस्थित रहे।