ड्रिप एंड शिप मॉडल के तहत हिसार के आसपास के अस्पतालों में स्ट्रोक का पता लगाने के लिए टीम एआई-आधारित सॉफ्टवेयर लॉन्च करने के लिए तैयार -डॉ विपुल गुप्ता

 


13 Oct 2023 

न्यूज़ नगरी 

हिसार (ब्यूरो)- स्ट्रोक की बढ़ती घटनाओं पर विचार-विमर्श करने के लिए, विशेष रूप से युवा आबादी के बीच, और स्ट्रोक को रोकने के संभावित उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, आर्टेमिस-एग्रीम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेस (स्ट्रोक यूनिट) के डॉक्टरों ने एक जन जागरूकता सत्र आयोजित किया। आर्टेमिस-एग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेज, गुरुग्राम के डॉ. राज श्रीनिवासन पार्थसारथी के साथ न्यूरोइंटरवेंशन एंड स्ट्रोक यूनिट के निदेशक डॉ विपुल गुप्ता की उपस्थिति में जागरूकता सत्र आयोजित किया गया।  इस टीम को हाल ही में विश्व स्ट्रोक संगठन द्वारा सर्वश्रेष्ठ स्ट्रोक इकाई के रूप में डायमंड लेवल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. यह हरियाणा राज्य की पहली ऐसी समर्पित स्ट्रोक यूनिट है, जिसे इस तरह के उच्च रैंकिंग ईनाम से सम्मानित किया गया है। 

6 में से 1 व्यक्ति को अपने जीवनकाल में स्ट्रोक का करना पड़ेगा सामना--डॉ विपुल गुप्ता

डॉक्टरों ने इस तथ्य के बारे में विस्तार से बताया कि 6 में से 1 व्यक्ति को अपने जीवनकाल में स्ट्रोक का सामना करना पड़ेगा और कहा कि अधिकांश एक्यूट स्ट्रोक के मामले रिवर्सिबल होते हैं। और यदि मरीज स्ट्रोक के लक्षण शुरू होने के 4-6 घंटे के भीतर सही अस्पताल पहुंच जाते हैं। तो क्लॉट हटाने वाले इंजेक्शन लगाए जाते हैं। (IV-tPA) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अधिकांश मामलों में मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी नामक एक प्रक्रिया जीवन रक्षक साबित हुई है। जिसे स्ट्रोक के 6-24 घंटों के भीतर करने की आवश्यकता होती है। लेकिन मुख्य चुनौती यह बनी हुई है कि मरीज को शुरुआती लक्षणों को तुरंत पहचानने और समय पर स्ट्रोक के लिए तैयार अस्पताल में पहुंचने की जरूरत है। ताकि संबंधित रोकथाम योग्य मृत्यु दर और रुग्णता को रोका जा सके।

स्ट्रोक में समय की है एक महत्वपूर्ण भूमिका -डॉ विपुल गुप्ता

सत्र के दौरान न्यूरोइंटरवेंशन एंड स्ट्रोक यूनिट आर्टेमिस-एग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेस, गुरुग्राम में निदेशक डॉ विपुल गुप्ता ने कहा “उसी के मद्देनजर हमने पूरे हरियाणा में संबद्ध नेटवर्क के साथ एक समर्पित, व्यापक स्ट्रोक यूनिट की स्थापना की है, जो आगे के प्रबंधन (थ्रोम्बेक्टोमी/हस्तक्षेप) के लिए स्ट्रोक रोगियों को हमारी स्ट्रोक यूनिट में ले जाने से पहले आपातकालीन क्लॉट घुलने वाली दवाओं के साथ मदद कर सकती है। इस तरीक़े को ड्रिप और शिप मॉडल के रूप में जाना जाता है। जहां एक नेटवर्क सेंटर (परिधीय केंद्र-ड्रिप) में आपातकालीन स्थिति में एक स्ट्रोक रोगी को क्लॉट घोलने वाली दवा दी जाती है। ताकि रोगी को नेटवर्क सेंटर में ले जाने के बाद समय पर इलाज किया जा सके। इस अवसर के माध्यम से मैं जनता को जागरूक करना चाहूंगा कि स्ट्रोक में समय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। और इस प्रकार हम इस तरह के उपायों (रोकथाम, नेटवर्क संघों आदि पर जागरूकता) के माध्यम से अधिक से अधिक जीवन बचाने की दिशा में लगातार प्रयास कर रहे हैं। टीम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सॉफ्टवेयर का भी उपयोग करेगी। जिसे सीटी स्कैन और एमआरआई के साथ जोड़ा जा सकता है। और ऑटोमैटिक सही जानकारी प्रदान करता है कि किसी व्यक्ति को स्ट्रोक का दौरा पड़ा था या नहीं और मरीज को मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी से फ़ायदा होगा या नहीं।  ये तरीक़ा बहुत समय बचाता है।  जिससे जीने की उम्मीद बढ़ती है और न्यूनतम मानव त्रुटि व अधिकतम दक्षता के साथ स्ट्रोक को रिवर्स किए जाने की चांस बढ़ जाते हैं।  टीम ने अपने ड्रिप और शिप दृष्टिकोण के माध्यम से जल्द ही हिसार  के 3-4 अस्पतालों में नेटवर्क सेंटर में एआई सॉफ्टवेयर लॉन्च करने की योजना बनाई है। 

जीवनशैली में कम से कम बदलाव के साथ स्ट्रोक की वजह के खतरों को बदलना पूरी तरह से है संभव- डॉ विपुल गुप्ता

डॉ विपुल ने  विस्तार से बताया हाल की तकनीकी प्रगति के अलावा हम इस तथ्य को उजागर करना चाहते हैं कि जीवनशैली में कम से कम बदलाव के साथ स्ट्रोक की वजह के खतरों को बदलना पूरी तरह से संभव है। जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल के स्तर पर नियंत्रण रखना, धूम्रपान बंद करना, शराब का सेवन न करना और सप्ताह में कम से कम 6 घंटे व्यायाम के साथ स्वस्थ आहार का पालन करना। अपने आहार में अधिक नमक के सेवन से परहेज के साथ-साथ जीवन शैली के ये कारक स्ट्रोक के आजीवन जोखिम को रोकने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार मैं लोगों से आग्रह करूंगा कि वे नियमित रूप से ख़ुद अपना मूल्यांकन के और अगर ज़रूरत हो तो नियमित अंतराल पर परीक्षण का विकल्प चुनें। जागरूकता सत्र के बाद लायंस क्लब हिसार के सहयोग से एक मुफ्त स्वास्थ्य जांच शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें 100 से अधिक स्थानीय निवासियों ने हिस्सा लिया। जिनका ब्लड प्रैशर, बल्ज शुगर, ऊंचाई, वजन और बीएमआई आदि की जाँच की गई।  प्रत्येक पेशेंट को सैल्फ स्ट्रोक रिस्क असेसमेंट फ़ॉर्म भरने को कहा गया। और उन जोखिम कारकों के बारे में भी बताया गया था। जो स्ट्रोक की वजह बन सकते हैं।  तनाव, वायु प्रदूषण, अत्यधिक स्क्रीन टाइम और नींद की कमी जैसे आधुनिक कारक स्ट्रोक की वृद्धि में भूमिका निभा रहे हैं। 

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