02 DEC 2025
न्यूज़ नगरी
रिपोर्टर-काजल
हिसार-वरिष्ठ अधिवक्ता मुल्ख राज महता ने न्यायपालिका में बढ़ते भ्रष्टाचार और इससे आम जनता को हो रहे अन्याय की गंभीर शिकायत करते हुए भारत के राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के माननीय मुख्य न्यायाधीश को विस्तृत पत्र भेजा है। उन्होंने पत्र में कहा है कि कई मामलों में हाई कोर्ट विजिलेंस द्वारा फैक्ट फाइंडिंग जांच में भ्रष्ट पाए जाने के बावजूद संबंधित ज्यूडिशियल अधिकारियों को न तो तत्काल निलंबित किया जाता है और न ही उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत आपराधिक कार्रवाई की जाती है। इस कारण ऐसे अधिकारी वर्षों तक अदालतों में पदस्थ रहकर फैसले सुनाते रहते हैं, जिससे न्याय व्यवस्था की साख पर प्रश्नचिह्न लगता है। महता ने आरोप लगाया कि अक्सर फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में दोषी पाए गए ज्यूडिशियल ऑफिसर 4 से 5 वर्षों तक नियमित रूप से अदालतों में कार्य करते रहते हैं, और बाद में रेगुलर डिपार्टमेंटल इंक्वायरी होने पर उन्हें या तो बर्खास्त किया जाता है या फिर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दे दी जाती है। कई मामलों में भ्रष्टाचार साबित होने के बावजूद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद भी ऐसे अधिकारियों को लाखों रुपये की पेंशन मिलती रहती है, जो न्याय और नैतिकता की दृष्टि से अत्यंत अनुचित है। एडवोकेट महता ने अपने पत्र में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट से जुड़े एक प्रकरण का उदाहरण देते हुए बताया कि वर्ष 2019–20 में हिसार में तैनात तत्कालीन एडीजे–कम–एएसजे श्री आर.के. जैन और श्रीमती परमवीर निज्जर के खिलाफ शिकायत मिलने पर हाई कोर्ट विजिलेंस ने जांच करवाई थी। दिनांक 22 जुलाई 2025 की रिपोर्ट में दोनों को भ्रष्ट पाया गया, लेकिन इसके बावजूद न तो उन्हें निलंबित किया गया और न ही उनके विरुद्ध कोई एफआईआर दर्ज की गई। दोनों अधिकारी लगभग पांच वर्ष तक न्यायिक कार्य करते रहे। बाद में रेगुलर जांच के बाद श्री आर.के. जैन को बर्खास्त किया गया, जबकि श्रीमती परमवीर निज्जर को, मेजर पनिशमेंट हेतु चार्जशीट होने के बावजूद, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दे दी गई। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों से जनता में न्यायपालिका के प्रति अविश्वास बढ़ता है और न्याय मिलने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। महता ने राष्ट्रपति और चीफ जस्टिस से अनुरोध किया है कि देश के सभी उच्च न्यायालयों से ऐसे मामलों का डेटा एकत्र किया जाए और जिन ज्यूडिशियल अधिकारियों को विजिलेंस जांच में भ्रष्ट पाया गया है, उनके खिलाफ तुरंत भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमे दर्ज करवाए जाएं। साथ ही, ऐसे अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर नियमित जांच सुनिश्चित की जाए, ताकि न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार का उन्मूलन हो सके और जनता को निष्पक्ष न्याय मिल सके। उन्होंने जोर दिया कि न्यायपालिका की पवित्रता बनाए रखने के लिए भ्रष्ट अधिकारियों की पहचान कर उन्हें तुरंत सिस्टम से बाहर करना समय की आवश्यकता है, तभी आम लोगों का न्याय पर भरोसा कायम रह सकेगा।
